Saturday, 18 August 2012

Izzhaar 2

एक शाम उस कॉफी शॉप में,
घंटों तक उनके सामने बैठे रहे.
उनकी बातों को सुनते रहे,
कुछ बोलने से बचते रहे.
नज़रों से खुद को छुपाते रहे,
सफ़ेद कमीज़ को सौस से बचाते रहे.  
धड़कनों का शोर कहीं कानों तक न पहुँच जाए,
कम्बखत धड़कनों को सीने में दबाते रहे.
मन तो था बताने का उन्हें काफ़ी कुछ,
मगर इज़हार करने से डरते रहे.
हर कदम पर पाँव पिघलते रहे.
मोम का दिल लेकर देखो खामोशी से,
हम सूरज से इश्क करते रहे.

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3 comments:

  1. bahoot khoob janab...
    ek khoobsurat ahsas he aapki kavitao me..bahut achha laga padkar...

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  2. So simply put, and yet so beautiful.

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